हमें वो प्यार ही आता है

इतना जो तुम चाहोगी
मैं कितना छुप पाऊँगा
आना तो चाहता हूँ
न जाने कब आऊँगा
तुम दूर से इतना क्यों
यूँ मुझको सताती हो
कहती हो सब आँखों से
लब से न बताती हो
बात इतनी सी है बस ये
तुम कुछ भी न जताती हो
प्यार का दिन हो क्यों कोई
ये मुझको समझाती हो

बदला वो नज़ारा है
जो तुम से आता है
बिन कोई बनावट का
ये रूप सुहाता है
बदली का सूरज भी
तुम्हें टीका लगाता है
ये वक़्त की ख़ामोशी
ज़ुल्फ़ों में  बंध जाती है
एक झोंका जीवन का
तेरी लटों सा खुल जाता है
कोई भी रूप जो हो तेरा
मुझको तो वो भाता है

मतलब मेरी बातों में
तुम ही तो लाती हो
फिर साथ में चलने से
तुम क्यों शर्माती हो
कोई नाम नहीं उसका
रब तक जो जाता है
ये प्यार का पन्ना है
हर कोई पढ़ पाता है
मेरी सब किताबों में
क्या तुम ही समाती हो
यूँ देखती हो मुझको
क्यों फिर नहीं आती हो

इतनी सी ये ख़्वाहिश है
तुम बस यूँ बन जाओ
रहो साथ न तुम मेरे
पर मुझ में बस जाओ
इतना बस कह दो तुम
मेरे लफ़्ज़ों की आतिश से
जो गीत निकलते हैं
बस तेरी ही ख़्वाहिश में
वो तुम तक पहुँचते हैं
कोई रोक न पाता है
जो जताया न जा पाये
हमें वो प्यार ही आता है

-प्रशान्त

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