इश्तिहार-ए-इश्क़ में नाम मेरा ही था
ये और है उसने खरीदा किसी और को
ये और है उसने खरीदा किसी और को
मैं बस जिस्म था दिल नहीं उसके लिये
बेपर्दा मुझे किया उसने पाने किसी और को
इतना भी नहीं क्यों था हमें ख़ुद पर इख़्तियार
ख़ुद से अलग क्यों चाहा था किसी और को
अश्क़ बहे थे जो मोहब्बत की निशानी न थे
वो पानी था जो उसे देना था किसी और को
इतना भी होता नहीं कि यादें मिट जायें मेरी
बना हूँ मैं देने को सबक किसी और को
-प्रशान्त