बस छत तक जाने का इरादा हो जिसका
आसमान में सुराख़ वो करेगा कैसे?
आसमान में सुराख़ वो करेगा कैसे?
बुझ जाता है दिल फ़िकरों से जिसका
ज़िन्दगी का सिकंदर वो बनेगा कैसे?
झोपड़ी में ही महल बस जायेगा जिसका
हक़ की लड़ाई आख़िर वो लड़ेगा कैसे?
मतलब के लिये बदलता रंग हो जिसका
उसकी दुआ ख़ुदा सुनेगा भी तो कैसे?
-प्रशान्त