बुरा हूँ बहुत बुरा पर न चाहा कभी
लफ्ज़ बोले नहीं पर कतरा समाया सभी
इसी आस में हमने बहाये न आँसू
साथ गंगा के बह न जाये जज़्बे सभी
बात निकली थी जो दिल से कभी
देखी कुछ थीं या पढ़ी थीं सभी?
इसी आस में हमने कुछ न कहा
पहुँचेगी तुम तक यूँ ही कभी
सामने थे तुम जब भी मेरे कभी
पास लगते थे फ़लसफ़े तब सभी
इसी आस में हमने कुछ न कहा
बिन पूछे कहोगे तुम कुछ तो कभी
बेनाम कर के देखो कोई ताल्लुक कभी
वस्ल,दोस्ती,हिज्र मिलेंगे सभी
इसी आस में हमने सोचा न कुछ
मेरी सोच में आप आयेंगे तो कभी
-प्रशान्त