"ऋचांकित" तुम्हारा प्यार!

अपने प्रिय मित्र अंकित के विवाह के अवसर पर ये कविता लिखी है।  प्रेम जैसे पूर्ण भाव को शब्दों में तो व्यक्त नहीं किया जा सकता, किन्तु अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति का यह एक भावनात्मक प्रयास है जिसे व्यक्ति-विशेष के अथवा भी समर्थन प्राप्त हो सकता  है।  इसी प्रत्याशा में ये पंक्तियाँ अंकित और उसकी सहभागिनी ऋचा को आजीवन प्रसन्नता की शुभकामनाओं के साथ सप्रेम समर्पित है- 

प्रेम आतुर था मिलने को, तुमसे
उतना ही जितना 
तुम आतुर थे 
मिलने को उस से। 
उस गिलहरी की तरह, जिसने 
पिछली गर्मी 
ना जाने किस आशा में 
छोड़ दी थी कुतर के आधी अमिया। 
सफल रहे, क्योंकि 
तुम दोनों ने मिलकर 
की प्रतीक्षा अगली गर्मी की 
और इस बीच कोई फल नहीं खाया। 
जीवन-शीत में घबराया सा 
आया प्रेम तुम्हारे पास 
था व्यथित, स्वर भर्राया सा 
समस्त भाव लिख लाया था। 
अगणित जिसे समझ ना सके 
क्षण में पढ़ लिए उस लिपि को तुम 
किंचित रुका है और रुका रहेगा प्रेम 
तुम्हारे पास; सरल,सरस,समीप,सघन।
नहीं ज्ञात मुझे वेदों का सार 
वहाँ प्रेम रेखांकित है या नहीं?
किन्तु,दृश्यमान मुझे जीवन-पटल पर सरल 
“ऋचांकित”   तुम्हारा प्यार!
-प्रशान्त 

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