मृत्यु सत्य है,
किन्तु तभी
जब वह प्राकृतिक हो,
अन्यथा है वो
एक भद्दा नाटक
जिसे खुद ही
लिखा-निर्देशित
किया गया हो,
जिसे देखा भी हो
तुमने अकेले
और किया हो अकेले ही
वो अंतिम अभिनय,
समाप्त हो गया जिसके बाद
सब कुछ,
रह गया खाली सभागार
जिस में बैठ कर
तुम खुद के लिये,
ताली भी ना बजा सके!
किन्तु तभी
जब वह प्राकृतिक हो,
अन्यथा है वो
एक भद्दा नाटक
जिसे खुद ही
लिखा-निर्देशित
किया गया हो,
जिसे देखा भी हो
तुमने अकेले
और किया हो अकेले ही
वो अंतिम अभिनय,
समाप्त हो गया जिसके बाद
सब कुछ,
रह गया खाली सभागार
जिस में बैठ कर
तुम खुद के लिये,
ताली भी ना बजा सके!
-प्रशान्त