मोहब्बत चीज़ पुरानी थी
अब उसका ना कोई मोल
नये दौर के इश्क़ का
ब्राण्ड कुछ अलहदा है,
ठीक चवन्नी वाली टाफी की तरह
जो ‘नये रैपर’ में
अब दस रुपये में मिलती है,
पहले मिलती थी
जो दूर बस एक दुकान पर
आज गली-गली में बिकती है
पाना है जिसको आसान
पर स्वाद करना मुश्किल है
अब पैसों के बिना कहाँ
सच्ची खुशियाँ मिलती हैं।
अब उसका ना कोई मोल
नये दौर के इश्क़ का
ब्राण्ड कुछ अलहदा है,
ठीक चवन्नी वाली टाफी की तरह
जो ‘नये रैपर’ में
अब दस रुपये में मिलती है,
पहले मिलती थी
जो दूर बस एक दुकान पर
आज गली-गली में बिकती है
पाना है जिसको आसान
पर स्वाद करना मुश्किल है
अब पैसों के बिना कहाँ
सच्ची खुशियाँ मिलती हैं।
-प्रशान्त