अच्छा हूँ या बुरा पता ही नहीं,

ना जाने क्या है गलत क्या है सही,
ढूँढा बगल अपने कौन कौन है,
दिमाग ना था और दिल भी नहीं,
मुड़ के देखा रास्तों पर,आया समझ 
कहा तो बहुत,किया कुछ भी नहीं 
पर ये सच है कि करी कोशिशें बहुत 
सब थे मेरे संग,बस मुकद्दर नहीं 
बदल लो खुद को है जीना अगर,
ज़िन्दगी इतनी आसान भी नहीं 
आगे बढ़ गये कदम तुमसे जो सुस्त थे ,
एक तुम हो कि  वहां से हिले ही नहीं ,
वो तस्वीर जो तुमने रखी थी वहां ,
रंग उसके अब वो रहे ही नहीं,
समझा जिसको सुर्ख लाल था,
उसको बचाने की कोशिश की क्यों नहीं,
कोई समझे अगर तो ठीक है,
ना समझे तो लाख दलीलें भी काफी नहीं,
मौका है आखिरी अब सख्त सोच लो,
दिमाग-ओ-दिल से कोई एक चुन लो,
और कितना गिरोगे राह-ए -ज़िन्दगी में,      
अब उठाने को तुमको कोई भी नहीं।
-अशांत  

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