फूल सुन्दर होते हैं
मैंने भी लगाया था एक पौधा
जिसमें फूल खिलते हैं
हर एक नया खिलता पत्ता
कली की आशा जगाता था
मिटटी,खाद,पानी के साथ
नयन-प्रेम से उसको सींचा था
आशा में उस फूल की
रंग सपनों में कई आये थे
फिर एक दिन एक कली खिली
छुपाये सुन्दरता का भण्डार
मेरे नीरस मन में किया
जिसने नव-आशा का संचार
फिर कली फूल बनने लगी
जैसे मैंने ही उसे बनाया हो
हर शाम मुझसे मिलने को
रहती थी पंखुड़ियां सुर्ख़ तैयार
फिर खूब वस्ल का दौर चला
लगता था ना टूटेगा ये सिलसिला
मैंने भी लगाया था एक पौधा
जिसमें फूल खिलते हैं
हर एक नया खिलता पत्ता
कली की आशा जगाता था
मिटटी,खाद,पानी के साथ
नयन-प्रेम से उसको सींचा था
आशा में उस फूल की
रंग सपनों में कई आये थे
फिर एक दिन एक कली खिली
छुपाये सुन्दरता का भण्डार
मेरे नीरस मन में किया
जिसने नव-आशा का संचार
फिर कली फूल बनने लगी
जैसे मैंने ही उसे बनाया हो
हर शाम मुझसे मिलने को
रहती थी पंखुड़ियां सुर्ख़ तैयार
फिर खूब वस्ल का दौर चला
लगता था ना टूटेगा ये सिलसिला
एक शाम मगर जब पंहुचा मैं
मिलने को अपने फूल से
वह वहाँ नहीं था
पता नहीं कहा था
पता चला पर बाद में
फूल किसी और का हो बैठा
टूट कर मुझसे किसी रकीब का बन बैठा
करता क्या मैं था निशक्त
वो डंठल जिस पर खिला था वो
तोड़ कर एक किताब में रख ली मैंने
जिसके पन्ने कभी-कभी
बेचैनी में
अब भी पलट लिया करता हूँ
ये जान कर भी
मेरे आँगन में वो फिर कभी नहीं खिलेगा
-अशांत