इत्तेफाक़न वो रंग कुछ इस तरह आँखों में बसा
और सभी रंग बेरंग हो गए
कुछ इस तरह रंगा मैंने तुम्हे रंगरेज़ बन कर
मेरे सामने ही तुम्हारे हाथ पीले हो गए
इतनी मसरूफियत थी ज़िन्दगी में
की तेरे रंग को ही जहान बना डाला
आज शीशे हैं मेरी आँखों के सफ़ेद
मुझे छोड़ मेरे यार तुम चमकीले हो गए
अशांत