जल पैरों में फोड़े और बिवाई भी देता है

अख़बार में “”जल-सत्याग्रह ” करतेवृद्ध कृषकों और ग्राम निवासियों के पैर देखे।वो ऐसे तो न थे जिन्हें देख कर उन्हें ज़मीन पर रखने से मना कर दूं।लेकिन मन ग्लानि ,व्यथा और निस्सहयता से भर गया कि क्या यही जनतंत्र है?अगर मतों की समानता देखी जाए तो ,मेरे और उन वृद्धों के चुनावी मत में कोई अंतर नहीं है ,फिर मेरे और उनके जीवन में इतना अंतर क्यों ?प्रयाग में पला बढ़ा हूँ,इसलिए जल को कई रूप में देखा है,किन्तु जल के ऐसे मायने पहली बार महसूस कर रहा हूँ।शायद चित्रों में दिख रही पैरों की बिवाइयों ने कई प्रश्न खड़े कर दिए हैं-हम पर,हमारी सोच पर ,हमारे विकास के पैमाने पर और सबसे अधिक हमारी जनतांत्रिक व्यवस्था पर!

चित्र साभार The Hindu(http://www.thehindu.com/news/states/other-states/article3889396.ece?homepage=true) अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत ग्रामवासियों की शारीरिक दुर्दशा दिखाता हुआ 
मुक्ति दाता-गंगा का जल 
पाप धोता -संगम का ज़ल  
संदेह नहीं किन्तु अब इस तथ्य में भी 
जनतंत्र में जल 
पैरों में फोड़े और बिवाई भी देता है 
स्कूल की वो प्रतिज्ञा
भाई बहन सब भारतवासी 
फिर मेरी दादी जो खड़ी थी 
सिर तक उस जल में 
जिसने बेटों और पति के लिए 
ना जाने कितने दिन जल छुआ भी ना था 
आज उसके बूढ़े पैर पिलपिला से गए 
किस लिए?
थोड़ी सी ऊंचाई कहीं 
डुबो न दे उसके झोपड़े को 
वही घर
आई थी जिसमे वो बन छोटी दुल्हन 
जहाँ लगा था रंग उसके पैरों में 
फूंका था चूल्हा जहाँ बरसो उसने 
जहाँ बनी थी माँ वो 
और दादी भी 
उसी घर को बचाने पानी से 
आज वो पानी से ही लड़ गई 
ये भूल गई कि 

जनतंत्र में जल 
पैरों में फोड़े और बिवाई भी देता है
मैं सिमटा हुआ अपने सीमित ज्ञान में 
संवेदना तो देता हूँ 
पर ठीक उसी वक़्त 
विकास के बहाने 
अपनी दादी का सुख चैन 
छीन लेता हूँ 
कसमसाता हूँ मैं भी उसके दर्द से 
पर जनतंत्र की दे दुहाई 
मरहम उसे न कोई देता हूँ 
जानता हूँ थोडा पढ़ लिख कर 
पानी जीवन ही नहीं 
दर्द भी देता है 
विकास-स्वार्थ हेतु किन्तु 
सीढ़ी दादी को 
ये संदेसा नहीं देता हूँ 
नहीं बताता मैं उसको 
जनतंत्र में जल 
पैरों में फोड़े और बिवाई भी देता है
निर्लज्ज और स्वार्थी हूँ मैं 
ढोंग करता हूँ ज्ञान का 
विलास का 
विकास का 
भूल गया गाँव 
जो कि कभी याद ही ना था 
नगरों में रहकर 
“मशीनी पानी” का मज़ा लेता हूँ 
भूल जाता हूँ लेकिन बताना दादी को 
जनतंत्र में जल 
पैरों में फोड़े और बिवाई भी देता है
अशांत  

Leave a comment