मेरा ज़िक्र

मेरा ज़िक्र कहीं किया न करो

ये मुमकिन है 
तुम्हारी बातों से मुझे
कोई चुरा न ले
क्या ज़रूरत मुझे दुनिया
के परदे पर लाने की
कहीं ऐसा न हो 
तुम रहो यहीं पर
और मुझे कोई चुरा ले
बेशक! इंतज़ार है मुश्किल 
पर है हकीकत भी
वस्ल में चिलमन का
अलग है मज़ा
इसे यूं ही रहने दो
बस ये ख्याल रहे कि
मुझे कोई चुरा न ले
फितरत कुछ अपनी भी है “अशांत”
मरासिम हो ऊब जाने की
ये तो उनका जिम्मा है
कुछ यूं करे आशिकी 
कि मुझे कोई चुरा न ले
अशांत 

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