आशिक कई बने हैं तेरे
तेरी मासूमियत के वार से
नज़रें इनायत कीजिये तो ज़रा
हम भी खड़े है इस कतार में।
अपनी नजाकत न है इल्म तुझे
हर अदा दिल पर असर करती है
शबाब पर होती हैं आँहें जब
हया से तेरी नज़रें झुकती हैं।
वादे करने की रस्म है कोई
तो चलो हम पूरी कर देंगे
यकीं यूँ तो नही है इन पर
तेरे लिए ज़मीर झूठा कर देंगे।
यूँ तो बहुत है क़द्र हुई होगी
लाखों तारीफें भी मिली होंगी
पर जिन नज़रों से देखा है हमने
वो खूबसूरती न किसी ने देखी होगी।
अनजान हम है तेरे असर से
कोई दावा न मिली दर्द की
एक रहम की फरियाद है
कुछ कद्र करिए इस नाचीज़ की।
अशांत