खून खंजर से ही नही
लफ्जों से भी होता है
सीधे चेहरों के पीछे भी
कई बार कातिल छुपा होता है।
मोहब्बत का खेल है जहाँ में
जिसके कई कच्चे खिलाडी हैं
दो लफ्जों के बदले लिख दी ज़िन्दगी साड़ी
देखो सब कितने अनादी(anaadi) हैं।
मासूम से दिल है सारे
अपनी सी सबकी नीयत दिखती है
गुलों से जिसने अपना महबूब पूजा
उसे दूजों के हाथ छुपी कटारी कहाँ दिखती है।
नादानी समझो या बचपना कहो
सच्चाई समझो या आडम्बर कहो
ख़ुद की पहचान डुबो दी है
इसे जुर्रत कहो या इबादत कहो।
सिला सच्चा सा न मिला मासूमों को
सीदेहे चेहरों ने नकाब उतारा है
महबूब बन जो कल तक थे बाहों में
आज उन्होंने प्यादों को खंजर मारा है।
खून खंजर से ही नही————-
अशांत
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